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आंतों का प्रबंधन

लकवा किस प्रकार पाचन तंत्र एवं आंतों और मलाशय को प्रभावित करता है

आरंभ से अंत तक देखें तो पाचन मार्ग एक खोखली नली है जिसका आरंभ मुंह से होता है और अंत गुदा पर। बड़ी आंत एवं मलाशय इस मार्ग का अंतिम भाग होते हैं जहां पचाए जा चुके भोजन के अवशिष्ट उत्पादों को तब तक रखा जाता है जब तक वे शरीर से मल या विष्ठा के रूप में निकाल नहीं दिए जाते।

लकवा आंतों व मलाशय को प्रभावित करता है और कब्ज़ से लेकर अचानक मल निकल जाने तक जैसी जटिलताएं उत्पन्न करता है। यदि आप लकवे के साथ जी रहे हैं या उससे प्रभावित हैं, तो आपके लिए पाचन मार्ग को और इस बात को समझना महत्वपूर्ण है कि स्वास्थ्य एवं जीवन की गुणवत्ता की रक्षा के लिए आंतों व मलाशय की जटिलताओं का प्रबंधन किस प्रकार करें।

पाचन की यात्रा

पहले कौर से लेकर मलाशय से निकास तक, पाचन के लिए कई अंगों और स्वायत्त कार्यों के एक नाज़ुक तालमेल की आवश्यकता पड़ती है।

भोजन को निगल लिए जाने के बाद, वह ग्रासनली से होते हुए आमाशय में पहुंचता है जो मूलतः एक स्टोरेज बैग है, और वहां से वह आंतों में और फिर मलाशय में पहुंचता है। पोषक-तत्वों का अवशोषण छोटी आंत, ग्रहणी (डुओडेनम), अग्रक्षुद्रांत्र/मध्यांत्र (जेजुनम), और शेषांत्र (इलियम) में होता है। इसके बाद आती है बड़ी आंत (बृहदांत्र/कोलन), जो उदर में दाईं ओर आरोही बृहदांत्र (असेंडिंग कोलन) के रूप में ऊपर चढ़ती है, फिर अनुप्रस्थ बृहदांत्र (ट्रांसवर्स कोलन) के रूप में दाएं से बाएं जाती है, और फिर “s” आकृति वाली अवग्रह बृहदांत्र (सिग्मॉइड कोलन) के रूप में नीचे उतरते हुए मलाशय से जुड़ती है और मलाशय, गुदा में खुलता है।

बड़ी आंत की दीवारों की मांसपेशियां आपस में तालमेल बनाकर संकुचन करती हैं जिसे क्रमांकुचन कहते हैं, और इसी क्रमाकुंचन के कारण मल बड़ी आंत व मलाशय में आगे की ओर बढ़ता है। कई अलग-अलग स्तरों पर मौजूद तंत्रिका कोशिकाओं का एक नेटवर्क इस संचलन का प्रबंधन करता है। यदि आंत की दीवार खिंच जाए, तो मायेंटरिक प्लेक्सस तंत्रिकाएं खिंचाव वाले स्थान से ऊपर की मांसपेशियों को संकुचित होने और नीचे वाली मांसपेशियों को शिथिल होने के लिए सक्रिय करके आंत में स्थानीय संचलन का निर्देश देती हैं, जिससे सामग्री नलिका में नीचे की ओर आगे बढ़ जाती है।

अगले स्तर का संगठन मिलता है मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी से बड़ी आंत को जाने वाली स्वायत्त तंत्रिकाओं से, जिन्हें वेगस तंत्रिका के माध्यम से निर्देश मिलते हैं। सर्वोच्च स्तर का नियंत्रण मिलता है मस्तिष्क से, जो मल एवं गैस के बीच भेद करता है, और जब उपयुक्त हो तब मलत्याग करने का निर्णय लेता है।

रीढ़ की हड्डी से होकर भेजे जाने वाले संदेश श्रोणि तल (पेल्विक फ़्लोर) और गुदा की स्फिंक्टर पेशियों में ऐच्छिक शिथिलन उत्पन्न करते हैं, जिससे मलत्याग की प्रक्रिया हो पाती है।

आंतों और मलाशय पर लकवे के प्रभाव

सीधे-सीधे कहें तो, लकवा आंतों और मलाशय की क्रिया बाधित कर देता है। चोट/क्षति किस स्तर पर पहुंची है इसके आधार पर आंतों व मलाशय की तंत्रिकाजन्य दुष्क्रिया के दो मुख्य प्रकार होते हैं: (L1 पर) कोनस मेडुलैरिस के ऊपर चोट/क्षति पहुंचने पर अपर मोटर न्यूरॉन (UMN) बॉउल सिंड्रोम होता है; L1 से नीचे की चोटों/क्षतियों के मामले में लोअर मोटर न्यूरॉन (LMN) बॉउल सिंड्रोम होता है।

UMN यानि अतिप्रतिवर्ती मलाशय में, गुदा की बाहरी स्फिंक्टर पेशी का ऐच्छिक नियंत्रण प्रभावित हो जाता है; स्फिंक्टर मांसपेशी कसी हुई बनी रहती है, जिससे कब्ज़ और मल के रुकने को बढ़ावा मिलता है। इस जटिलता का संबंध ऑटोनॉमिक डिसरिफ़्लेक्सिया की घटनाओं से पाया गया है। UMN में, रीढ़ की हड्डी और बड़ी आंत के बीच के संपर्क अक्षत रहते हैं, अतः प्रतिवर्ती क्रियाओं के तालमेल और मल को आगे बढ़ाने की क्रिया पर कोई प्रभाव नहीं होता है। UMN मलाशय से पीड़ित लोगों में मलत्याग, मलाशय को दिए गए किसी उद्दीपन से उत्पन्न प्रतिवर्ती क्रिया के फलस्वरूप होता है; सपोज़िटरी (बत्ती) और डिजिटल उद्दीपन ऐसे उद्दीपनों के उदाहरण हैं।

LMN या फ़्लेसिड मलाशय में मल का संचलन (क्रमाकुंचन) अत्यंत घट जाता है और मल धीमी गति से आगे बढ़ता है। इसके फलस्वरूप कब्ज़ होता है और चूंकि गुदा की स्फिंक्टर पेशी सक्रिय नहीं रहती इसलिए मलत्याग पर नियंत्रण न रहने यानि मल अचानक निकल जाने का जोखिम बढ़ जाता है। बवासीर का जोखिम न्यूनतम करने के लिए, मल को मुलायम बनाने वाली चीजों का उपयोग करें, मलत्याग के प्रयासों के दौरान कम-से-कम ज़ोर डालें, और उद्दीपन देने के दौरान भौतिक आघात कम-से-कम रखें।

मलत्याग संबंधी दुर्घटनाएं हो जाती हैं

मलत्याग संबंधी दुर्घटनाओं से बचने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि एक समय-सारणी का उपयोग किया जाए और मलाशय को सिखाया जाए कि मलत्याग कब करना है।

अधिकांश लोग अपना मलत्याग कार्यक्रम दिन के ऐसे समय पर करते हैं जो उनकी जीवनशैली के लिए सुविधाजनक होता है। इस कार्यक्रम के आरंभ में आमतौर पर कोई सपोज़िटरी (बत्ती) या मिनी-एनेमा घुसाया जाता है, जिसके बाद 15-20 मिनट प्रतीक्षा की जाती है ताकि उद्दीपक (बत्ती या एनेमा) कार्य कर सके। प्रतीक्षा के बाद, हर 10 से 15 मिनट पर डिजिटल उद्दीपन दिया जाता है जो तब तक देते हैं जब तक मलाशय खाली न हो जाए। LMN या फ़्लेसिड मलाशय से पीड़ित लोग प्रायः अपने कार्यक्रम का आरंभ डिजिटल उद्दीपन द्वारा या मेनुअल ढंग से मल निकालकर करते हैं।

इन मलत्याग कार्यक्रमों को पूरा होने में आमतौर पर 30 से 60 मिनट लगते हैं। मलत्याग कार्यक्रम कमोड पर किया जा सकता है और ऐसा ही करना बेहतर है। हालांकि, जिन लोगों में त्वचा के भंग होने का अधिक जोख़िम है उन्हें बैठी हुई स्थिति बनाम बिस्तर में लेटी हुई स्थिति में मलाशय की देखभाल के महत्व की तुलना करनी चाहिए।

तंत्रिकाओं एवं मांसपेशियों से संबंधित लकवे से पीड़ित बहुत से लोग कब्ज़ की समस्या से ग्रस्त रहते हैं। कब्ज़ में सहायता के लिए कई प्रकार के रेचक (लैक्ज़ेटिव, मल ढीला करने वाले पदार्थ) उपलब्ध हैं। मेटाम्युसिल जैसे रेचक मल की मात्रा बढ़ाने के लिए आवश्यक रेशे यानि फ़ाइबर प्रदान करते हैं, जिससे मल को बड़ी आंत एवं मलाशय से होकर आगे बढ़ाना आसान हो जाता है। मल मुलायम करने वाले पदार्थ, जैसे कोलेस (Colace) भी मल में पानी की मात्रा अधिक रखते हैं, जिससे वह मुलायम बना रहता है और उसे आगे बढ़ाना आसान रहता है। बिसेकोडिल (Bisacodyl) जैसे उद्दीपक बड़ी आंत और मलाशय की पेशियों के संकुचन (क्रमाकुंचन) को बढ़ाते हैं, जिससे मल आगे बढ़ता जाता है।

बारंबार उद्दीपकों का उपयोग करने से कब्ज़ की समस्या वस्तुतः और बदतर हो सकती है – बड़ी आंत और मलाशय सामान्य क्रमाकुंचन तक के लिए इन उद्दीपकों पर निर्भर हो जाते हैं।

सपोज़िटरी (बत्ती) का उपयोग

मुख्य रूप से दो प्रकार की सपोज़िटरी (बत्ती) उपलब्ध हैं, और दोनों ही में सक्रिय घटक के रूप में बिसेकोडिल (Bisacodyl) होता है: पहली है वानस्पतिक आधार वाली (जैसे डल्कोलैक्स (Dulcolax)) और दूसरी है पॉलीएथिलीन ग्लायकॉल आधार वाली (जैसे मैजिक बुलेट)। बताया जाता है कि बुलेट, दूसरे विकल्प की तुलना में दोगुनी तेज़ हैं।

एंटेग्रेड कॉन्टिनेन्स एनीमा (क्रमाकुंचन की सामान्य दिशा में नियंत्रण वाला एनीमा) मलाशय की कठिन समस्याओं से पीड़ित कुछ लोगों के लिए एक विकल्प है। इस तकनीक में सर्जरी द्वारा उदर में एक छेद (स्टोमा) बना देते हैं; इससे मलाशय से पहले बड़ी आंत में तरल पदार्थ पहुंचाए जा सकते हैं, जिससे मलाशय से मल-पदार्थ फ़्लश की भांति निकल जाते हैं। इस विधि से मलत्याग में लगने वाला समय काफी कम हो जाता है और कुछ दवाओं से मुक्ति भी मिल सकती है।

बेहतर पाचन प्रबंधन के लिए कुछ तथ्य

  • हर दिन मलत्याग होना सामान्यतः आवश्यक नहीं होता है। हर दूसरे दिन मलत्याग ठीक है।
  • भोजन के बाद आंतों व मलाशय में अधिक तेज़ी व आसानी से क्रमाकुंचन होता है।
  • प्रतिदिन दो क्वार्ट (लगभग दो लीटर) तरल पदार्थों के सेवन से मल मुलायम बनाए रखने में सहायता मिलती है; गुनगुने द्रव भी क्रमाकुंचन में सहायता देते हैं।
  • स्वस्थ आहार, जिसमें चोकर वाले अन्न, सब्जियों, और फलों के रूप में रेशे (फ़ाइबर) हों, पाचन प्रक्रिया को सक्रिय बनाए रखने में सहायता करता है।
  • गतिविधि एवं व्यायाम से भी बड़ी आंत और मलाशय के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।

लकवाग्रस्त लोगों द्वारा आमतौर पर ली जाने वाली कुछ दवाएं मलाशय को प्रभावित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, (मूत्राशय की देखभाल के लिए ली जाने वाली) एंटीकोलिनर्जिक दवाएं कब्ज़ या मलाशय अवरोध तक उत्पन्न कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त, ऐसी कई दवाएं हैं जो कब्ज़ का कारण बन सकती हैं, जैसे अवसादरोधी दवाएं, जिनका एक उदाहरण है एमिट्रिप्टिलिन (Amitryptyline); दर्द की स्वापक (नारकोटिक) दवाएं; और स्पास्टिसिटी (मांसपेशियों की कठोरता) के उपचार के लिए प्रयुक्त कुछ दवाएं, जैसे डैंट्रोलीन सोडियम (dantrolene sodium)।

कई लोग कोलोस्टॉमी करवाने के बाद जीवन की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार का अनुभव करते हैं। इस सर्जिकल विकल्प में बड़ी आंत और उदर की सतह के बीच एक स्थायी छेद बना दिया जाता है जिससे एक मल एकत्रण बैग जोड़ दिया जाता है। कभी-कभी मल निकलने या दबाव के कारण होने वाले छालों/घावों के कारण, मलत्याग पर नियंत्रण की लगातार हानि के कारण, या मलत्याग में अत्यधिक समय लगने की स्थिति में कोलोस्टॉमी आवश्यक हो जाती है। कोलोस्टॉमी बहुत से लोग अपने मलाशय का प्रबंधन करने में आत्मनिर्भर हो जाते हैं, और इसमें मलत्याग से भी कम समय लगता है।

अध्ययनों से पता चला है कि कोलोस्टॉमी करवाने वाले लोग इससे संतुष्ट हैं और इस कार्यविधि को पलटना नहीं चाहते हैं।

हालांकि संभव है कि बहुत से लोग आरंभ में कोलोस्टॉमी के विचार को न अपनाएं, पर इस कार्यविधि से जीवन की गुणवत्ता में बड़ा बदलाव आ सकता है, क्योंकि यह मलत्याग में लगने वाले समय को, जो आठ घंटे तक हो सकता है, घटाकर 15 मिनट या उससे कम पर ला देती है।

आंतों व मलाशय का रखरखाव

आत्मनिर्भरता के लिए अनुकूली साधन: आंतों व मलाशय के प्रबंधन के साधन

आंतों व मलाशय की देखभाल अत्यंत व्यक्तिगत होती है! यह वीडियो इस बात पर प्रकाश डालता है कि C7 के स्तर पर रीढ़ की हड्डी की चोट/क्षति से पीड़ित व्यक्ति कैसे अपनी आंतों व मलाशय की देखभाल स्वयं करता है। ये वस्तुएं ऑनलाइन या किसी व्यावसायिक थेरेपिस्ट की सहायता से प्राप्त की जा सकती हैं।

क्रिस्टोफ़र एवं डाना रीव फ़ाउंडेशन तथा क्रेग हॉस्पिटल द्वारा बनाया गया यह वीडियो हाथों की कमज़ोरी से पीड़ित ऐसे लोगों के लिए उपलब्ध कार्यात्मक साधनों या अनुकूली उपकरणों पर प्रकाश डालता है जो अपनी दैनिक गतिविधियों में अधिक आत्मनिर्भरता हासिल करना चाहते हैं।

आंतों व मलाशय की देखभाल के लिए संसाधन

यदि आप ALS के बारे में और जानकारी की तलाश में हैं या आपको कोई विशेष प्रश्न पूछना है, तो हमारे जानकारी विशेषज्ञ सप्ताह के व्यापारिक कार्यदिवसों पर, सोमवार से शुक्रवार सुबह 9 बजे से 5 बजे (पूर्वी समयानुसार) तक टोल फ़्री नंबर 800-539-7309 पर उपलब्ध हैं।

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स्रोत: बर्मिंघम में यूनिवर्सिटी ऑफ़ अलाबामा, यूनिवर्सिटी ऑफ़ वॉशिंगटन स्कूल ऑफ़ मेडिसिन, ALS एसोसिएशन, नेशनल मल्टिपल स्क्लेरोसिस सोसायटी