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स्ट्रोक (सेरेब्रल वैस्कुलर एक्सिडेंट (CVA) और स्पाइनल स्ट्रोक)

स्ट्रोक क्या होता है?

जब केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में रक्त प्रवाह गड़बड़ा जाता है तो सेरेब्रल वैस्कुलर एक्सिडेंट (CVA) या स्ट्रोक होता है। CVA अधिकतर मस्तिष्क में होता है, पर कुछ विरले मामलों में यह रीढ़ की हड्डी में भी हो सकता है। जब किसी रक्त वाहिका को नुकसान पहुंचने, रक्त वाहिका के फट जाने या किसी चीज़ जैसे किसी थक्के या एम्बोलाइ (वसा या अन्य पदार्थ का गोला या हवा का बुलबुला) के चलते रक्त प्रवाह रुक जाने के कारण केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) के रक्त प्रवाह में बदलाव आता है तब स्ट्रोक होता है। CNS में रक्त प्रवाह धीमा पड़ने से भी स्ट्रोक हो सकता है।

यदि किसी व्यक्ति के हृदय को जाने वाले रक्त प्रवाह में घटाव या रुकावट आए तो कहा जाता है कि उसे हृदयाघात (हार्ट अटैक) हो रहा है। यही स्थिति केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में रीढ़ की हड्डी के अंदर, मस्तिष्क के अंदर, या दोनों के अंदर बन सकती है। जब किसी व्यक्ति के रीढ़ की हड्डी या मस्तिष्क को जाने वाले रक्त प्रवाह में घटाव या रुकावट आती है या उसके रीढ़ की हड्डी अथवा मस्तिष्क में अचानक रक्तस्राव होता है तो कहा जाता है कि उस व्यक्ति को “स्पाइन अटैक” या “ब्रेन अटैक” हो रहा है।

स्ट्रोक मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है:

  • इस्कीमिक स्ट्रोक मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी को रक्तापूर्ति देने वाली किसी रक्त वाहिका में किसी अवरोध (थक्के या एम्बोलाइ) के कारण होते हैं। यह अवरोध आमतौर पर ऐसे प्लाक (टुकड़े) के कारण उत्पन्न होता है जो रक्त वाहिकाओं में जमा हुआ होता है और फिर वह टूट कर अलग हो जाता है और बहते हुए CNS में आ जाता है। थक्के या एम्बोलाइ की शुरुआत आमतौर पर हृदय, महाधमनी या कैरोटिड धमनियों में होती है और वहां से वह CNS में पहुंच जाता है जहां वह आमतौर पर नन्हीं रक्त वाहिकाओं से गुजर नहीं पाता है। इससे रीढ़ की हड्डी या मस्तिष्क के प्रभावित भाग को जाने वाला रक्त प्रवाह रुक जाता है जिससे स्ट्रोक होता है। अज्ञात कारण से हुए इस्कीमिक स्ट्रोक को क्रिप्टोजेनिक स्ट्रोक कहते हैं।
    • ट्रांस इस्कीमिक आघात (TIA), जिसे कभी-कभी मिनी स्ट्रोक कहा जाता है, एक इस्कीमिक प्रकार की घटना होती है जो 24 घंटों के अंदर ठीक हो जाता है। TIA इस बात का संकेत है कि आगे चल कर स्ट्रोक हो सकता है। यह स्ट्रोक का चेतावनी संकेत हो सकता है।
  • रक्तस्रावी स्ट्रोक किसी रक्त वाहिका के फट जाने और फिर उससे आसपास मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी में रक्तस्राव होने के कारण होता है। इस प्रकार के स्ट्रोक के कारणों में उच्च रक्तचाप, एन्युरिज़्म (धमनी का कमज़ोर पड़कर फूल जाना), आर्टेरियोवीनस मैलफ़ॉर्मेशन (AVM, धमनी – शिरा की गलत बनावट) या रक्तस्राव संबंधी विकार शामिल हो सकते हैं।
  • धमनी – शिरा की गलत बनावट एक प्रकार का रक्तस्राव है जो धमनी और शिरा के मिलनस्थल पर होता है। इसमें धमनी और शिरा को जोड़ने वाली रक्त वाहिकाएं आपस में उलझ जाती हैं। ऐसा शरीर में कहीं भी हो सकता है, पर CNS (मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी) में ऐसा होना विशेष रूप से हानिकारक होता है। AVM जन्म के समय मौजूद होते हैं। अधिकांश से तब तक कोई समस्या नहीं होती और उनका पता नहीं चलता जब तक वे फट न जाएं।

जब कोई CVA होता है, तो CNS के प्रभावित स्थान की तंत्रिका कोशिकाएं ऑक्सीजन के अभाव के कारण कार्य नहीं कर पाती हैं। उस स्थान में सूजन बढ़ने के कारण उससे आस-पास के ऊतक भी प्रभावित हो सकते हैं। रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क कठोर हड्डियों के अंदर होते हैं अतः सूजन अंदर-ही-अंदर बढ़ती रहती है। इससे, CNS के अंदर का दबाव नर्म तंत्रिका ऊतकों को दबाने लगता है।

रीढ़ की हड्डी के CVA के फलस्वरूप शरीर के दोनों ओर संपूर्ण (-प्लेजिया) या अपूर्ण (-पेयरेसिस) लकवा होता है; इसकी संपूर्णता या अपूर्णता इस बात पर निर्भर करती है कि रीढ़ की हड्डी में किस स्तर पर चोट या क्षति पहुंची है। टेट्राप्लेजिया या टेट्रापेयरेसिस (क्वाड्रीप्लेजिया) में शरीर, दोनों बांहें और दोनों पैर प्रभावित होते हैं। पैराप्लेजिया या पैरापेयरेसिस में शरीर का निचला भाग प्रभावित होता है। रीढ़ की हड्डी के स्ट्रोक के प्रभावों में सचलता और कार्यक्षमता में बदलाव शामिल होते हैं। रीढ़ की हड्डी के स्ट्रोक के उपचार में थक्का तोड़ने वाली दवाएं प्रभावी मालूम नहीं देती हैं।

मस्तिष्क का CVA पूरे शरीर को प्रभावित कर सकता है, जिसमें लकवा या पेयरेसिस (आंशिक लकवा), संज्ञान और स्मृति संबंधी कमियां, बोली और दृष्टि संबंधी समस्याएं, भावनात्मक कठिनाइयां, दैनिक जीवन-यापन से जुड़ी चुनौतियां, और दर्द शामिल हैं। लकवा यानि पक्षाघात, स्ट्रोक का एक आम परिणाम होता है, जो प्रायः शरीर की एक साइड पर होता है (जिसे हेमीप्लेजिया कहते हैं)। संभव है कि लकवा केवल चेहरे, किसी एक बांह या एक पैर को प्रभावित करे, पर अधिकतर मामलों में यह शरीर और चेहरे की पूरी एक साइड को प्रभावित कर सकता है। मस्तिष्क के बाएं अर्द्धगोलार्द्ध (साइड) में स्ट्रोक से पीड़ित होने वाले व्यक्ति में दाईं ओर का लकवा, या पैरेसिस (आंशिक लकवा) देखने को मिलता है। इसी प्रकार, जिस व्यक्ति के मस्तिष्क के दाएं अर्द्धगोलार्द्ध (साइड) में स्ट्रोक हुआ हो उसमें शरीर की बाईं ओर में कमियां देखने को मिलती हैं।

ब्रेनस्टेम (रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क को जोड़ने वाली संरचना) का CVA इस मामले में थोड़ा अनोखा होता है कि इसके लक्षणों में अत्यधिक असंतुलन के साथ सिर चकराना या सिर घूमना शामिल होते हैं। दोहरी दृष्टि, अस्पष्ट बोली, और चेतना का स्तर घटना जैसे लक्षण भी मौजूद हो सकते हैं। ब्रेनस्टेम का स्ट्रोक अक्सर अन्य तंत्रिकीय रोगों जैसे लक्षण उत्पन्न करता है। उपचार का लाभ लेने के लिए आरंभ में ही निदान होना ज़रूरी है।

जोखिम कारक और लक्षण

स्ट्रोक के जोखिम कारकों को दो वर्गों में बांटा गया है, पहले वे जिन्हें आप नियंत्रित नहीं कर सकते हैं, और दूसरे वे जिन्हें आप नियंत्रित कर सकते हैं। यदि आपमें नियंत्रित न हो सकने वाले जोखिम कारक मौजूद हों, तो नियंत्रित हो सकने वाले जोखिम कारकों को नियंत्रित करने का हर संभव प्रयास करके जोखिम घटाएं।

नियंत्रित न हो सकने वाले जोखिम कारकों में वंशानुगत कारक और कुछ पहले से मौजूद स्थितियां शामिल होती हैं। इनमें शामिल हैं आयु, लिंग, नस्ल/जाति, आनुवंशिकी, और पहले TIA, स्ट्रोक या हृदयाघात होने का इतिहास। नवजात शिशुओं से लेकर बुजुर्गों तक, हर आयु के लोगों में स्ट्रोक होते हैं, पर जैसे-जैसे आपकी आयु बढ़ती है, शरीर में होने वाले कुछ बदलावों, जैसे धमनियों की प्रत्यास्थता घटने (एथेरोस्क्लेरोसिस), के कारण आपमें स्ट्रोक का जोख़िम बढ़ता जाता है। महिलाओं में स्ट्रोक होने का जोखिम मात्र इस कारण से अधिक होता है क्योंकि वे पुरुषों से अधिक जीती हैं। महिलाओ में स्ट्रोक की शुरुआत इन बाद वाले वर्षों में हो सकती है। गर्भावस्था संबंधी जटिलताएं, कुछ गर्भनिरोधक और रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज़) के बाद के हॉर्मोन, स्ट्रोक का जोखिम बढ़ा सकते हैं। आनुवंशिकी में परिवार में स्ट्रोक होने का इतिहास या ऐसे आनुवंशिक रोग आते हैं जो आपमें स्ट्रोक का जोखिम बढ़ा सकते हैं। जिस व्यक्ति में मस्तिष्क की कोई घटना, जैसे TIA या स्ट्रोक हो चुकी हो, उसमें वह घटना दोबारा होने का जोखिम कहीं अधिक होता है।

आप स्ट्रोक का अपना जोखिम घटाने के लिए कई कारकों को नियंत्रित कर सकते हैं। आप आपके जोखिम को बढ़ाने वाले रोगों को नियंत्रित करके स्ट्रोक का अपना जोखिम काफी हद तक घटा सकते हैं। इन रोगों में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा, उच्च कोलेस्टेरॉल, कैरोटिड धमनी रोग, परिधीय वाहिकीय रोग (पेरिफेरल वैस्कुलर डिसीज़), एट्रियल फ़िब्रिलेशन (अलिंद का बेताल हो जाना) और अन्य हृदय रोग, एवं सिकिल सेल रोग शामिल हैं। स्वस्थ आहार अपनाने और सुझाई गईं दवाएं लेने से इनमें से कई जोखिम कारकों को नियंत्रित किया जा सकता है। अपने जीवन में गतिविधि बढ़ाने से भी आपको जोखिम घटाने में मदद मिलेगी। धूम्रपान, एल्कोहल और मनबहलाव वाली दवाओं/मादक पदार्थों का उपयोग रोक देने से भी स्ट्रोक के जोखिम में अच्छी-खासी कमी आ सकती है।

यदि आपको रीढ़ की हड्डी का स्ट्रोक या रीढ़ की हड्डी की कोई और चोट/क्षति हो चुकी है, तो ऑटोनॉमिक डिसरिफ़्लेक्सिया (AD) की जटिलता आपके मस्तिष्क में स्ट्रोक का जोखिम बढ़ा देती है। AD एक चिकित्सीय आपातस्थिति है जिसमें रक्तचाप, व्यक्ति के सामान्य स्तर की तुलना में काफी ऊंचे स्तर पर पहुंच जाता है। समय के साथ, रीढ़ की हड्डी की चोट के साथ जी रहे व्यक्ति का रक्तचाप, उसके सामान्य रक्तचाप से कम हो जाता है। रक्तचाप का बढ़ कर सामान्य रेंज में आना, उस व्यक्ति के लिए उच्च रक्तचाप का संकेत हो सकता है। ऑटोनॉमिक डिसरिफ़्लेक्सिया के बारे में अधिक जानकारी यहां उपलब्ध है।

कुछ चिकित्सीय कार्यविधियों में रीढ़ की हड्डी या मस्तिष्क के स्ट्रोक होने का जोखिम होता है, जैसे हार्ट बायपास सर्जरी, ओपन एबडॉमिनल एओरटिक एन्यूरिज़्म, रीढ़ की हड्डी की सर्जरी, या रीढ़ की हड्डी की धमनियों में से थक्का निकालना। रक्त में थक्का बना सकने या जमे हुए थक्के को अपनी जगह से अलग करके मुक्त कर सकने वाली किसी भी सर्जरी, परीक्षण या कार्यविधि से स्ट्रोक होने का जोखिम बढ़ जाता है।

स्ट्रोक के लक्षण

रीढ़ की हड्डी का स्ट्रोक

रीढ़ की हड्डी के स्ट्रोक के लक्षण अस्पष्ट होते हैं। रीढ़ की हड्डी के स्ट्रोक के संकेतों को किसी अन्य रोग के संकेत समझे जाने की गलती हो सकती है। कोई एक लक्षण भी दिख सकता है और सारे भी। रीढ़ की हड्डी के स्ट्रोक के लक्षण इस प्रकार हैं:

  • गर्दन या कमर में अचानक से तेज़ दर्द
  • पैरों की मांसपेशियों में कमज़ोरी
  • मलाशय और मूत्राशय को नियंत्रित करने में समस्याएं (मल या मूत्र रोक न पाना)
  • ऐसा महसूस होना कि धड़ के चारों ओर कोई पट्टी कस कर बंधी हुई है
  • मांसपेशियों में ऐंठन
  • सुन्नपन
  • झुनझुनी
  • लकवा
  • गर्मी या ठंड महसूस न कर पाना

रीढ़ की हड्डी के स्ट्रोक का पता लग पाना कठिन हो सकता है। आपमें कोई एक लक्षण, कुछ लक्षण, या सारे लक्षण हो सकते हैं। यदि आपमें रीढ़ की हड्डी के स्ट्रोक के लक्षण उत्पन्न हों तो यह ज़रूरी है कि आप 911 को कॉल करें।

मस्तिष्क का स्ट्रोक

मस्तिष्क के स्ट्रोक के लक्षण इस प्रकार हैं:

F-फ़ेशियल (चेहरे से संबंधित)-चेहरे का लटक जाना, इसमें चेहरे की एक पूरी साइड लटकी दिख सकती है या केवल आंख या मुंह लटका दिख सकता है

A-आर्म्स (बांहें)-संभव है कि व्यक्ति अपनी एक बांह, दूसरी जितनी ऊंचाई तक न उठा पाए, या एक बांह नीचे की ओर लटक/झुक रही हो

S-स्पीच (बोली)-बोली अस्पष्ट या अजीब हो सकती है, जैसी मुश्किल शब्दों या आवाज़ों के उपयोग में हो जाती है

T-टाइम (समय) उपचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि उपचार तुरंत शुरू करना ज़रूरी होता है, 911 को कॉल करें

आपमें इनमें से कोई एक लक्षण, कुछ लक्षण, या सारे लक्षण हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि आपको पता न चले कि आपमें स्ट्रोक के लक्षण हो रहे हैं। हो सकता है कि किसी और का इन लक्षणों पर ध्यान जाए। लक्षणों की शुरुआत होने का समय नोट करना न भूलें। अपने शरीर पर ‘onset (शुरुआत): XX:XX am या pm’ लिख दें, ताकि यदि स्ट्रोक बढ़ जाए और आपातकालीन कार्मिकों के पहुंचने पर आप कुछ भी याद करने या बोलने की स्थिति में न हों तो यह जानकारी काम आए। यह जानकारी उपचार के लिए बहुत महत्व रखती है।

स्ट्रोक के परिणाम

स्ट्रोक के परिणाम, रीढ़ की हड्डी या मस्तिष्क में चोट के स्थान पर निर्भर करते हैं।

रीढ़ की हड्डी

रीढ़ की हड्डी के स्ट्रोक के फलस्वरूप चोट के स्तर के नीचे का पूरा या आंशिक लकवा, मलाशय और मूत्राशय संबंधी समस्याएं, यौन क्षमता में कमी, चलने-फिरने और संवेदनाएं महसूस करने में कठिनाई जैसी समस्याएं होती हैं। इसके परिणामों में टेट्राप्लेजिया (क्वाड्रीप्लेजिया यानि धड़, दोनों बांहों और दोनों पैरों का लकवा), पैराप्लेजिया (धड़ व पैरों का लकवा), या रीढ़ की हड्डी का कोई सिंड्रोम शामिल हो सकते हैं। स्ट्रोक का सामना करने वाले लोगों की स्ट्रोक के बाद की क्षमताएं अलग-अलग होंगी जो रीढ़ की हड्डी में स्ट्रोक के स्थान पर निर्भर करती हैं।

रीढ़ की हड्डी में स्ट्रोक होने के बाद, कुछ लोगों को दर्द, असुविधाजनक सुन्नपन, या अजीब संवेदनाओं का अनुभव हो सकता है। ऐसा कई कारकों के कारण हो सकता है, जिसमें रीढ़ की हड्डी को क्षति शामिल है जिससे मस्तिष्क से शरीर को जाने वाले संदेश बाधित हो जाते हैं। रीढ़ की हड्डी का स्ट्रोक, रीढ़ की हड्डी में स्ट्रोक होने के स्तर पर इन संदेशों को बाधित कर देता है।

रीढ़ की हड्डी का स्ट्रोक, दीर्घस्थायी रुग्णता की चुनौतियों के कारण अवसाद का कारण बन सकता है। मानसिक या शारीरिक कार्यक्षमता की कमी डरावनी हो सकती है। जीवनशैली और पारिवारिक संबंधों में आने वाले बदलाव समस्या को काफी बढ़ा देते हैं।

मस्तिष्क

बाईं ओर के मस्तिष्क का स्ट्रोक शरीर की दाईं ओर के पूरे या आंशिक लकवे का कारण बन सकता है। बोली समझने, शब्द बोलने, और शब्द ढूंढने में कठिनाई हो सकती है या फिर शब्दों या आवाज़ों का असामान्य उपयोग देखने को मिल सकता है। व्यक्ति अपने व्यवहार में आमतौर पर काफी सावधान और कभी-कभी तो डरा हुआ भी रहता है। व्यक्ति को स्मृति हानि हो सकती है।

दाईं ओर के मस्तिष्क का स्ट्रोक शरीर की बाईं साइड के पूरे या आंशिक लकवे का कारण बन सकता है। इसमें अक्सर दृष्टि संबंधी कठिनाइयां, तेज़ और आवेगी हरकतें एवं विचार देखने को मिलते हैं। व्यक्ति को स्मृति हानि हो सकती है।

बाईं या दाईं ओर के मस्तिष्क के स्ट्रोक में व्यक्ति के दृष्टि क्षेत्र का एक हिस्सा गायब हो सकता है जिसे हेमिएनोप्सिया (अर्द्धदृष्टिता) कहते हैं। व्यक्ति दृष्टिहीन नहीं होता है, पर उसकी दोनों आंखों में दृष्टि क्षेत्र घट जाता है। फलस्वरूप, एक साइड की दृष्टि जाती रहती है। दृष्टि क्षेत्र उसी साइड से गायब होता है जिस साइड शरीर में लकवा हुआ है। व्यक्ति यह पहचान नहीं कर पाता है कि उसके दृष्टि क्षेत्र का एक हिस्सा गायब है। इस अनदेखी के कारण शरीर की लकवे वाली साइड की इस हद तक अनदेखी हो सकती है कि व्यक्ति शरीर के उन अंगों को अपना नहीं मानता है।

ब्रेनस्टेम

ब्रेनस्टेम के स्ट्रोक के लक्षणों में असंतुलन के साथ सिर चकराने या सिर घूमने के लक्षण शामिल होते हैं। अलग-अलग व्यक्ति की कार्यात्मक क्षमताओं में अलग-अलग घटाव देखने को मिलता है, जिनके कारण लॉक्ड-इन सिंड्रोम हो सकता है जिसमें व्यक्ति को समझ तो आता है कि क्या हो रहा है, पर वह शारीरिक या शाब्दिक रूप से उत्तर नहीं दे पाता है। व्यक्ति को स्मृति हानि हो सकती है।

स्ट्रोक आपके मानसिक कुशलक्षेम को प्रभावित कर सकता है। मस्तिष्क में स्ट्रोक कहां हुआ है इस बात पर निर्भर करते हुए, आपको चीज़ें याद रखने में कठिनाई हो सकती है, आप लापरवाह या चिड़चिड़े हो सकते हैं, या आपको कोई भ्रम हो सकता है। कुछ लोग अनुपयुक्त ढंग से हंसते या रोते रहते हैं।

उपचार और स्वास्थ्य-लाभ

स्ट्रोक के प्रति तत्काल जवाब तुरंत कार्रवाई करना है। 911 को कॉल करें। अपने-आप ड्राइविंग करने की कोशिश न करें या किसी और से कहें कि वह आपको वाहन से अस्पताल ले जाए। आपातकालीन कार्मिक स्वास्थ्य-लाभ की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। लक्षणों के आरंभ होने से आपातकालीन सेवाओं तक पहुंचने के बीच हर बीतते मिनट के साथ हस्तक्षेप की सीमित अवधि घटती जाती है।

आपमें रीढ़ की हड्डी या मस्तिष्क, दोनों के अटैक के जोखिम को घटाने के लिए स्ट्रोक की रोकथाम के उपाय किए जाने चाहिए। इसमें तीन मुख्य रोकथाम शामिल हैं; आहार, व्यायाम, और धूम्रपान रोक देना। आप अन्य जिन भी जोखिम कारकों को नियंत्रित कर सकते हों उनमें संशोधन करना चाहिए। दवाओं से भी स्ट्रोक का जोखिम घटाने में मदद मिल सकती है। आपके स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता की सलाह के अनुसार, कोलेस्टेरॉल घटाने वाली, रक्त पतला करने वाली और प्लेटलेट-रोधी दवाएं ली जानी चाहिए।

इस्कीमिक स्ट्रोक का उपचार अवरोध हटाकर और मस्तिष्क को जाने वाला रक्त प्रवाह बहाल करके किया जाता है। इसके लिए टिश्यू प्लाज़्मिनोजेन एक्टिवेटर (t-PA) नामक दवा का उपयोग करके अवरोध को तोड़ दिया जाता है। यदि लक्षण शुरू होने के 6 घंटों के अंदर दवा दे दी जाए तो इस्कीमिक स्ट्रोक के असर को पलटा जा सकता है। दवा जितनी जल्द मिलेगी, परिणाम उतना ही बेहतर होगा। विशेष रूप से निर्धारित अस्पताल, जिन्हें स्ट्रोक सेंटर कहते हैं, में सुव्यस्थित मूल्यांकन होते हैं, ताकि t-PA को समय रहते दिया जा सके। दवा पाने के लिए यह ज़रूरी है कि आपको, या किसी और को लक्षणों की शुरुआत का समय पता हो।

हेमरेजिक स्ट्रोक से पहले, चिकित्सक एन्युरिज़्म (धमनियों के फूलने) के फटने की, रक्तस्राव की, तथा धमनियों और शिराओं की विकृतियों की रोकथाम करते हैं। यदि वाहिका फटी नहीं है, तो वाहिका के कमज़ोर हिस्से को सहारा देने के लिए उसके इर्द-गिर्द एक ‘पिंजरा’ लगाया जा सकता है, या बाहर को फूलती वाहिका को ‘क्लिप करके’ हटाया जा सकता है। यदि वाहिका पहले ही फट चुकी है, तो उस स्थान पर को जाने वाले रक्त की अधिकता को हटाने के लिए सर्जरी की जा सकती है, या शरीर को अतिरिक्त रक्त अपने-आप सोखने देकर इस दौरान उस स्थान की निगरानी की जा सकती है।

इस बीच, आरंभिक हमले के बाद उठने वाली क्षति की लहर को रोकने के लिए अन्य तंत्रिका-संरक्षी दवाएं विकसित की जा रही हैं। कैरोटिड एन्डार्टेरेक्टॉमी नामक कार्यविधि में कैरोटिड धमनियों से प्लाक और थक्के हटाना, गर्दन और मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में स्टेंट लगाना, और रक्त पतला करने वाली दवाएं देना, इन सभी से स्ट्रोक का, विशेष रूप से दूसरे स्ट्रोक का जोखिम घटता है।

स्वास्थ्य-लाभ के सामान्य दिशानिर्देश दर्शाते हैं कि:

  • 10 प्रतिशत स्ट्रोक पीड़ित लगभग पूरी तरह ठीक हो जाते हैं
  • 25 प्रतिशत पीड़ित मामूली नुकसान के साथ ठीक हो जाते हैं
  • 40 प्रतिशत पीड़ित मध्यम से गंभीर तीव्रता के नुकसान का अनुभव करते हैं जिसके लिए विशेष देखभाल आवश्यक होती है
  • 10 प्रतिशत पीड़ितों को किसी नर्सिंग होम में देखभाल या अन्य दीर्घकालिक देखभाल की आवश्यकता पड़ती है
  • 15 प्रतिशत पीड़ित स्ट्रोक के कुछ ही समय बाद मर जाते हैं

पुनर्सुधार

पुनर्सुधार, रीढ़ की हड्डी या मस्तिष्क का स्ट्रोक होने के तुरंत बाद शुरू हो जाता है और इसे अस्पताल से छुट्टी के बाद जब तक आवश्यकता हो तब तक जारी रखना चाहिए। पुनर्सुधार के विकल्पों में अस्पताल की पुनर्सुधार इकाई, अनुतीव्र (सबएक्यूट) देखभाल इकाई, पुनर्सुधार अस्पताल, घर पर चिकित्सा, भर्ती हुए बिना देखभाल (आउटपेशेंट केयर), या किसी नर्सिंग इकाई में दीर्घकालिक देखभाल शामिल हो सकते हैं। चिकित्सा में भाग ले सकने की आपकी योग्यता से देखभाल का वह स्तर तय होगा जो आपके पुनर्सुधार के लिए उपयुक्त है। तीव्र देखभाल इकाई में आपके स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर, केस प्रबंधक या सामाजिक कार्यकर्ता आपको देखभाल का उपयुक्त स्तर तय करने में मदद देंगे।

कार्यक्षमता में सुधार लाना पुनर्सुधार का लक्ष्य होता है ताकि व्यक्ति अधिकतम संभव आत्मनिर्भर बन सके। यह स्थिति इस तरह से हासिल की जानी चाहिए जिससे व्यक्ति की गरिमा बनी रहे और वह आधारभूत कौशलों – जैसे खाना-पीना, कपड़े पहनना, और चलना-फिरना – सीखने को प्रेरित हो। पुनर्सुधार व्यक्ति की शक्ति, क्षमता, और आत्मविश्वास में वर्धन करता है ताकि व्यक्ति स्ट्रोक के प्रभावों के बावजूद अपनी दैनिक गतिविधियां जारी रख सके।

गतिविधियां इस प्रकार हो सकती हैं:

  • स्वयं की देखभाल के कौशल, जैसे खाना-पीना, सजना-संवरना, नहाना, और कपड़े पहनना
  • चलने-फिरने के कौशल जैसे एक स्थान से दूसरे स्थान जाना, चलना, या व्हीलचेयर चलाना
  • संचार कौशल; संज्ञानात्मक कौशल, जैसे स्मृति या समस्या हल करना
  • अन्य लोगों से व्यवहार के लिए सामाजिक कौशल।
  • नियंत्रण-प्रेरित चिकित्सा (कॉन्स्ट्रेन्ट इन्ड्यूस्ड थेरेपी)
  • फ़ंक्शनल इलेक्ट्रिकल स्टीमुलेशन
  • व्यक्ति के भार को आंशिक सहारे के साथ चलना-फिरना (पार्शियल वेट सपोर्टेड वॉकिंग)
  • गतिविधि आधारित व्यायाम
  • जल चिकित्सा (एक्वेटिक थेरेपी)
  • संगीत चिकित्सा

स्ट्रोक के बाद, व्यक्ति प्रायः उन घरेलू कामों को अत्यधिक कठिन या असंभव पाते हैं जो उनके लिए कभी साधारण हुआ करते थे। लोगों को अपनी आत्मनिर्भरता वापस पाने और सुरक्षित व सरल ढंग से कार्य करने में सहायता देने के लिए कई अनुकूली यंत्र एवं तकनीकें उपलब्ध हैं। घर को प्रायः इस तरह संशोधित किया जा सकता है ताकि व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताएं पूरी कर सके।

नियंत्रण-प्रेरित संचलन-आधारित चिकित्सा (कॉन्स्ट्रेन्ट-इन्ड्यूस्ड मूवमेन्ट-बेस्ड थेरेपी, CIT) नामक पद्धति ने ऐसे लोगों में स्वास्थ्य-लाभ में सुधार किया है जिन्होंने किसी एक बांह या पैर की कार्यक्षमता का कुछ अंश खोया है। इस चिकित्सा में रोगी के अप्रभावित बांह या पैर को अचल बना दिया जाता है ताकि वह प्रभावित बांह या पैर का उपयोग करने पर विवश हो जाए। माना जाता है कि CIT से तंत्रिका मार्ग नए सिरे से फिर से बनने को, यानि ढलनशीलता को बढ़ावा मिलता है।

प्रौद्योगिकी में हुई तरक्की से ऐसी चिकित्साएं हासिल हुई हैं जिन्हें पुनर्सुधार देखभाल में शामिल किया जा रहा है। पॉइंटर से, आंखों के संचलन को, यहां तक कि मस्तिष्क की तरंगों को शब्दों में बदलने वाले विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस उपलब्ध हैं जिन्हें व्यक्ति की ज़रूरतों के मुताबिक चुना जा सकता है।

स्ट्रोक के उपचार के लिए शारीरिक पुनर्सुधार कार्यक्रम में नई और उन्नत चिकित्साएं जोड़ी गई हैं। त्वचा पर लगाए गए इलेक्ट्रोड्स के जरिए इलेक्ट्रिक स्टीमुलेशन देकर शरीर की प्रभावित तंत्रिकाओं को इनपुट दिए जा सकते हैं। दोहराव वाले संचलन प्रदान करने वाली मशीनें, जैसे व्यक्ति के भार को आंशिक सहारे के साथ चलना-फिरना (पार्शियल वेट सपोर्टेड वॉकिंग), हथेलियों का संचलन उत्पन्न करने वाले ‘दस्ताने’ और गतिविधि-आधारित चिकित्सा, कार्यक्षमता की वापसी के लिए बांहों व पैरों को स्टीमुलेशन प्रदान करते हैं। दर्पण चिकित्सा में व्यक्ति अपने शरीर की प्रभावित साइड को देख कर, मस्तिष्क की उसी साइड से नियंत्रण हासिल करना सीखता है। जल चिकित्सा (एक्वेटिक थेरेपी) शरीर को जल के उत्प्लावक बल का लाभ उठा कर संचलन करने की सुविधा देती है। संगीत चिकित्सा में ताल को संचलन से जोड़ा जाता है। ये सभी स्ट्रोक के बाद स्वास्थ्य-लाभ में वर्धन कर सकते हैं।

स्ट्रोक से स्वास्थ्य-लाभ करने में समय लग सकता है। शुरुआत में जब सूजन और मस्तिष्क को पहुंचा आघात ठीक होते हैं तो स्वास्थ्य-लाभ तेज़ दिख सकता है। समय के साथ, कार्यक्षमता की वापसी धीमी दिखाई पड़ सकती है, पर स्वास्थ्य-लाभ तब भी हो रहा होता है। यह एक मिथक है कि केंद्रीय तंत्रिका तंत्र स्वास्थ्य-लाभ का प्रयास नहीं करता है। यह भी एक मिथक है कि आप जिन तंत्रिका कोशिकाओं के साथ जन्म लेते हैं, जीवन भर बस उतनी ही कोशिकाएं रहती हैं, नई नहीं बनतीं।

तंत्रिका तंत्र काफी हद तक सुधार करने में सक्षम होता है। वह प्लास्टिसिटी नामक एक प्रक्रिया के जरिए खुद की मरम्मत करने और कार्यक्षमता बहाल करने की कोशिश करता है। शरीर में नई तंत्रिका कोशिकाएं आजीवन विकसित होती रहती हैं। अपने घरेलू व्यायाम नियम से करते रहने से सुधार, भले ही धीमी गति से हो, पर वह जारी रहेगा।

तथ्य एवं आंकड़े

स्ट्रोक अमेरिका में मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण है और गंभीर, दीर्घकालिक अशक्तता का अग्रणी कारण है। मात्र कुछ वर्ष पहले, यह मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण था। उपचारों में हो रही उन्नति के कारण जीवित बचने की दर बढ़ रही है।

अनुमान है कि रीढ़ की हड्डी का स्ट्रोक 10 लाख में से 54 लोगों में होता है। रीढ़ की हड्डी का स्ट्रोक दुर्लभ है। इसलिए, स्ट्रोक की सामान्य जानकारी प्रदान की गई है।

आज स्ट्रोक से होकर गुजरने वाले लगभग 60 लाख लोग जीवित हैं।

अमेरिका में हर वर्ष 8,00,000 स्ट्रोक होते हैं।

मस्तिष्क के 87% स्ट्रोक इस्कीमिक होते हैं। मस्तिष्क के 13% स्ट्रोक हेमरेजिक होते हैं।

एट्रियल फ़िब्रिलेशन (असामान्य हृदयगति) के साथ जी रहे व्यक्तियों में स्ट्रोक होने की संभावना 5 गुनी होती है।

विश्व स्ट्रोक दिवस 29 अक्तूबर को मनाया जाता है।

रक्तचाप, कोलेस्टेरॉल और रक्त शर्करा को नियंत्रित करके स्ट्रोक के अस्सी प्रतिशत मामलों की रोकथाम की जा सकती है। स्वस्थ आहार लेना, भार घटाना, और सक्रिय रहना भी रोकथाम के अच्छे उपाय हैं। धूम्रपान बंद कर दें। कम मात्रा वाली एस्पिरिन केवल तब लें जब आपके स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर ने उसकी सलाह दी हो। (बिना आवश्यकता एस्पिरिन लेने से आपके स्वास्थ्य को अन्य तरीकों से नुकसान हो सकता है।)

स्रोत: NIH तथ्य पत्रक

अनुसंधान

अनुसंधान में हुई प्रगति से स्ट्रोक के जोखिम में मौजूद या इससे पीड़ित हो चुके लोगों के लिए नई चिकित्साएं एवं नई आशाएं प्राप्त हुई हैं। स्ट्रोक के विभिन्न पहलुओं पर हजारों शोध अध्ययन किए जा रहे हैं। स्ट्रोक की रोकथाम, जोखिम कारकों के नियंत्रण और उपचारों के अध्ययन जारी हैं।

स्ट्रोक का जोखिम बढ़ाने वाले उन कारकों का प्रयोगशाला में अध्ययन हो रहा है जिन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। उन कारकों को संशोधित करने के लिए आनुवंशिक चिकित्सा का अध्ययन किया जा रहा है। एक रोचक पद्धति यह है कि मस्तिष्क को जाने वाले रक्त का प्रवाह बिल्कुल वैसे ही धीमा कर दिया जाए जैसा शीतनिद्रा में जाने वाले पशुओं में हो जाता है। एक अन्य पद्धति में रक्त प्रवाह की आवश्यकता घटाने के लिए हायपोथर्मिया यानि शरीर को अत्यधिक ठंडा करने का प्रयोग किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर, कुछ ऐसे अध्ययन भी किए जा रहे हैं जिनमें ट्रांसक्रेनियल स्टीमुलेशन के जरिए मस्तिष्क को जाने वाले रक्त का प्रवाह बढ़ाया जा रहा है, इसमें स्ट्रोक के बाद एक बाहरी डिवाइस की मदद से मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी के प्रभावित भाग को जाने वाले रक्त प्रवाह को बढ़ाया जाता है।

जब स्ट्रोक होता है, तो रीढ़ की हड्डी की कुछ कोशिकाएं तत्काल मर जाती हैं; और अन्य कोशिकाएं विनाश के जारी क्रम के कारण कई घंटों तक, यहां तक कि कई दिनों तक, जोखिम में बनी रहती हैं। कुछ क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को तंत्रिका-संरक्षी दवाओं के शीघ्र हस्तक्षेप से ही बचाया जा सकता है। विभिन्न प्रकार से कार्य करने वाली ये दवाएं फ़िलहाल क्लीनिकल परीक्षणों से गुजर रही हैं।

क्लीनिकल परीक्षण जारी हैं। ये शोध अध्ययन हैं जो लोगों पर किए जाते हैं। कैरोटिड धमनियों में स्टेंट के उपयोग (जैसे हृदय में होता है काफी हद तक वैसे ही) को सर्जरी जितना प्रभावी पाया गया है। प्लेटलेट-रोधी दवा के साथ या उसके बिना एस्पिरिन के सेवन के चिकित्सीय उपचार का अध्ययन दूसरे स्ट्रोक का जोखिम घटाने वाले उपचार के तौर पर किया जा रहा है। एल्बुमिन और ग्लूकोज़ का नियंत्रण करने वाली अन्य दवाओं का अध्ययन किया जा रहा है।

लगभग हर रोग के संभावित उपचार के रूप में स्टेम कोशिकाओं का अध्ययन किया जा रहा है। ये अध्ययन शुरुआती चरणों में हैं। फ़िलहाल स्टेम सेल के उपयोग से स्ट्रोक को ठीक नहीं किया जा सकता है।

स्ट्रोक के प्रबंधन के लिए संसाधन एवं सहयोग

यदि आप स्ट्रोक के बारे में और जानकारी की तलाश में हैं या आपको कोई विशेष प्रश्न पूछना है, तो हमारे जानकारी विशेषज्ञ सप्ताह के व्यापारिक कार्यदिवसों पर, सोमवार से शुक्रवार सुबह 9 बजे से 5 बजे (पूर्वी समयानुसार) तक टोल फ़्री नंबर 800-539-7309 पर उपलब्ध हैं।

स्ट्रोक के प्रबंधन के लिए संसाधन एवं सहयोग

अतिरिक्त पठन

स्ट्रोक के लक्षण—रीढ़ की हड्डी अनुभाग:

Hill VA, Towfighi A. Modifiable Risk Factors for Stroke and Strategies for Stroke Prevention. Semin Neurol. 2017 Jun;37(3):237-258. doi: 10.1055/s-0037-1603685. Epub 2017 Jul 31.

Alloubani A, Saleh A, Abdelhafiz I. Hypertension and diabetes mellitus as a predictive risk factors for stroke. Diabetes Metab Syndr. 2018 Jul;12(4):577-584. doi: 0.1016/j.dsx.2018.03.009. Epub 2018 Mar 19.

स्ट्रोक के परिणाम अनुभाग:

Hankey GJ. Stroke. Lancet. 2017 Feb 11;389(10069):641-654. doi: 10.1016/S0140-6736(16)30962-X. Epub 2016 Sep 13.

Frolov A, Feuerstein J, Subramanian PS. Homonymous Hemianopia and Vision Restoration Therapy. Homonymous Hemianopia and Vision Restoration Therapy. Neurol Clin. 2017 Feb;35(1):29-43. doi: 10.1016/j.ncl.2016.08.010.

Bartolomeo P, Thiebaut de Schotten M. Let thy left brain know what thy right brain doeth: Inter-hemispheric compensation of functional deficits after brain damage. Neuropsychologia. 2016 Dec;93(Pt B):407-412. doi: 10.1016/j.neuropsychologia.2016.06.016. Epub 2016 Jun 14.

उपचार एवं स्वास्थ्य-लाभ अनुभाग:

Siegel J, Pizzi MA, Brent Peel J, Alejos D, Mbabuike N, Brown BL, Hodge D, David Freeman W. Update on Neurocritical Care of Stroke. Curr Cardiol Rep. 2017 Aug;19(8):67. doi: 10.1007/s11886-017-0881-7

Hadidi NN, Huna Wagner RL, Lindquist R. Nonpharmacological Treatments for Post-Stroke Depression: An Integrative Review of the Literature. Res Gerontol Nurs. 2017 Jul 1;10(4):182-195. doi: 10.3928/19404921-20170524-02. Epub 2017 May 30

पुनर्वास अनुभाग:

Ware R, Moore M. Validity of measures of neurological status used for predicting functional independence in adults after a cerebrovascular accident: a systematic review protocol. JBI Database System Rev Implement Rep. 2017 Mar;15(3):603-606. doi: 10.11124/JBISRIR-2016-002978.

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Hara Y. Brain plasticity and rehabilitation in stroke patients. J Nippon Med Sch. 2015;82(1):4-13. doi: 10.1272/jnms.82.4. Review.

तथ्य एवं आंकड़े अनुभाग:

Thrift AG, Thayabaranathan T, Howard G, Howard VJ, Rothwell PM, Feigin VL, Norrving B, Donnan GA, Cadilhac DA. Global stroke statistics. Int J Stroke. 2017 Jan;12(1):13-32. doi: 10.1177/1747493016676285.

अनुसंधान अनुभाग:

Hu X, Tong KY, Li R, Chen M, Xue JJ, Ho SK, Chen PN. Combined functional electrical stimulation (FES) and robotic system for wrist rehabiliation after stroke. Stud Health Technol Inform. 2010;154:223-8.

Russo MJ, Prodan V, Meda NN, Carcavallo L, Muracioli A, Sabe L, Bonamico L, Allegri RF, Olmos L. High-technology augmentative communication for adults with post-stroke aphasia: a systematic review. Expert Rev Med Devices. 2017 May;14(5):355-370. doi: 10.1080/17434440.2017.1324291. Epub 2017 May 9.

Hoermann S, Ferreira Dos Santos L, Morkisch N, Jettkowski K, Sillis M, Devan H, Kanagasabai PS, Schmidt H, Krüger J, Dohle C, Regenbrecht H, Hale L, Cutfield NJ. Computerised mirror therapy with Augmented Reflection Technology for early stroke rehabilitation: clinical feasibility and integration as an adjunct therapy. Disabil Rehabil. 2017 Jul;39(15):1503-1514. doi: 10.1080/09638288.2017.1291765. Epub 2017 Mar 3.

Bertani R, Melegari C, De Cola MC, Bramanti A, Bramanti P, Calabrò RS. Effects of robot-assisted upper limb rehabilitation in stroke patients: a systematic review with meta-analysis. Neurol Sci. 2017 Sep;38(9):1561-1569. doi: 10.1007/s10072-017-2995-5. Epub 2017 May 24.